अाज मैं अापको एक कविता अौंर उसका अर्थ बताने वाला हू। जिसमे कवि विपत्तियों से रक्षा कि नही उन विपत्तियों से लडने की शक्ति मागता है इश्वर से।
विपत्तियों से रक्षा कर - यह मेरी प्रार्थना नहीं,
मै विपत्तियों से भयभीत न होऊ !
अपने दुख से वयथित चितत को सांत्वना देने की भीक्षा
नहीं माँगता,
मैं दु:खो पर विजय पाऊँ !
यदि सहायता न जुटे तो भी मेरा बल न टुटे !
संसार से हानि हि मिले, केवल वंचना हि पाऊं
तो भी मेरा मन उसे क्षति न माने !
"मेरा त्राण कर " यह मेरी प्रार्थना नहीं,
मेरा भार हलका करके मुझे सांत्वना न दे,
यह भार वहन करके चलता रहुुुँ !
सुखभरे क्षणो मे नतमस्तक मैं तेरा मुख पहचान पाऊँ
किंतु दु:ख -भरी रातों मे जब सारी दुनिया मेरी वंचना करे,
तब भी मैं तेरे प्रति शंकित न होऊँ !
कविता अर्थ:-
कविता मे कवि ईश्वर से विपत्तियों से मुक्ति पाने की प्रार्थना न करते हुए , उन विपत्तियों से निरभिक होकर सामना करने की शक्ति माँगता है। वह जीवन की दोनो परिस्थितियों -सुख और दुख - मे समान रुप से ईश्वर से जुडे रहना चाहता है। कवि दु:खो का भार लेकर चलना चाहता है , वह उनसे मुक्ति नहीं चाहता। वह सिर्फ प्रभु से यह विनती करता है कि दु:ख मे वह प्रभु के प्रति शंकित न हो। संघर्षपुर्ण जीवन ही, जीवन की सार्थकता है।
विपत्तियों से रक्षा कर - यह मेरी प्रार्थना नहीं,
मै विपत्तियों से भयभीत न होऊ !
अपने दुख से वयथित चितत को सांत्वना देने की भीक्षा
नहीं माँगता,
मैं दु:खो पर विजय पाऊँ !
यदि सहायता न जुटे तो भी मेरा बल न टुटे !
संसार से हानि हि मिले, केवल वंचना हि पाऊं
तो भी मेरा मन उसे क्षति न माने !
"मेरा त्राण कर " यह मेरी प्रार्थना नहीं,
मेरा भार हलका करके मुझे सांत्वना न दे,
यह भार वहन करके चलता रहुुुँ !
सुखभरे क्षणो मे नतमस्तक मैं तेरा मुख पहचान पाऊँ
किंतु दु:ख -भरी रातों मे जब सारी दुनिया मेरी वंचना करे,
तब भी मैं तेरे प्रति शंकित न होऊँ !
कविता अर्थ:-
कविता मे कवि ईश्वर से विपत्तियों से मुक्ति पाने की प्रार्थना न करते हुए , उन विपत्तियों से निरभिक होकर सामना करने की शक्ति माँगता है। वह जीवन की दोनो परिस्थितियों -सुख और दुख - मे समान रुप से ईश्वर से जुडे रहना चाहता है। कवि दु:खो का भार लेकर चलना चाहता है , वह उनसे मुक्ति नहीं चाहता। वह सिर्फ प्रभु से यह विनती करता है कि दु:ख मे वह प्रभु के प्रति शंकित न हो। संघर्षपुर्ण जीवन ही, जीवन की सार्थकता है।